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कैसे पुरुषों को पसंद करती हैं महिलाएं?

अनुभूति
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girl-kissलड़के अगर कुछ फैक्टर्स के बल पर लड़कियों को पसंद करते हैं, तो इस मामले में लड़कियां भी कोई कम नहीं हैं। लड़कों को पसंद करने के उनके अपने कायदे हैं और वे खुद से बेटर पोज़िशन वाले को जल्दी पसंद कर लेती हैं। इसके लिए वे कुछ ऐसी बातों तक को इग्नोर कर देती हैं, जिनसे समझौता आमतौर पर मुश्किल होता है।


मशहूर दार्शनिक फ्रायड ने कहा था कि उन्हें इस बात का जवाब कभी नहीं मिला कि एक औरत अपनी जिंदगी से क्या चाहती हैं। कुछ ऐसी ही उधेड़बुन से आपको आज की ज्यादातर महिलाएं भी जूझती दिख जाएंगी। बेशक इस कन्फ़्यूज़न के केंद्र में शादी और उससे जुड़े सवाल ही अहम रहते हैं। ऐसे में यह सोचना कि महिलाएं फ़ाइनैंशल तौर पर पुरुषों पर निर्भर नहीं होना चाहतीं, पूरी तरह से सच नहीं है। आज की महिलाएं भी बेहतर करियर से ज्यादा खुशहाल परिवार का सपना देखती हैं। हालांकि, इस बात को खुले तौर पर मानने में उन्हें थोड़ी हिचक होती है।

जी हां, तमाम स्टडी से यह बात साबित हुई है। अक्सर देखा भी गया है कि लड़कियां बॉयफ्रेंड को शादी के लिए मना कर देती हैं। उनका कहना होता है कि वे अपने करियर में आगे बढ़ना चाहती हैं और अभी सेटल होने के बारे में नहीं सोच रही हैं। लेकिन, हायर डिग्री वाले या फिर हाई इनकम वाले वेल-सेटल्ड लड़के के साथ उनका रवैया ऐसा नहीं रहता। ऐसे पुरुष के साथ शादी के प्रपोजल को वे झट मान जाती हैं।

पुरानी सोच का डर
इसी तरह की एक रिसर्च से जुड़ीं लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स की रिसर्चर कैथरिन हाकिम बताती हैं, ‘दुनिया भर में विमिन इम्पॉवरमेंट की बातें लगभग 40 साल से चल रही हैं। ऐसे में बस हाउसवाइफ बनने की बात को महिलाएं स्वीकार नहीं पातीं। अगर यह बात उनके मन में होगी, तो भी वे दकियानूसी कहलाए जाने के डर से यह बात नहीं कहेंगी। हालांकि, हमारे आसपास ऐसी तमाम महिलाएं हैं, जो फाइनैंशल मैटर्स के लिए अपने पार्टनर पर डिपेंड रहना चाहती हैं।’

गौर करने वाली बात यह है कि उम्र ज्यादा होने पर भी महिलाएं ऐसे साथी के सपने संजोए रहती हैं , जो हर लिहाज से उनसे आगे हो। रिसर्च के दौरान देखा गया कि कई यूरोपियन देशों की उम्रदराज महिलाएं भी शादी के लिए तभी तैयार हुईं , जब उन्हें अपने से ज्यादा धनवान और पढ़े – लिखे पुरुष मिले। ब्रिटेन में लगभग 50 साल पहले हुई एक रिसर्च में 20 फीसदी महिलाएं अपने से ज्यादा पढ़े-लिखे पुरुष से शादी करना चाहती थीं , वहीं पिछले दशक में ये आंकडे़ 38 फीसदी तक पहुंच चुके हैं। यही पैटर्न पूरे यूरोप , यूएस और ऑस्ट्रेलिया में भी नोट किया गया। जाहिर है , तेजी से वेस्टर्न कल्चर में ढल रहीं इंडियन मेट्रोज की महिलाएं भी इस राह पर हैं।

नजरिया अलग – अलग
हालांकि इस रिसर्च को लेकर महिलाओं की राय अलग – अलग है। जहां, कुछ इससे सहमत नजर आती हैं , वहीं कुछ को इसमें दम नजर नहीं आता। एक एचआर फर्म में बतौर हेड काम कर चुकीं श्रुति सिंह इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं दिखतीं। श्रुति का कहना है , ‘ मैंने लव मैरिज की और हाल में अपनी जॉब से रिजाइन दिया है। दरअसल , मेरे हज़्बंड को पांच साल के लिए लंदन की एक आईटी कंपनी में जॉब मिली है और मैं उनके साथ जाना चाहती हूं। मेरा फैसला इमोशंस और जिम्मेदारी से लिया गया है। इसमें उनके पैकेज की बात कहीं नहीं है। फिर वहां जाने पर भी मैं पढ़ाई या जॉब कर सकती हूं। ‘

वैसे , बैंक प्रफेशनल निहारिका जोशी ऐसे मैच को बेस्ट ऑप्शन मानती हैं। उनका कहना है , ‘ जिंदगी में घर और ऑफिस की दुधारी तलवार पर लटकने से क्या मिलेगा ? आपको घर की जिम्मेदारी तो निभानी ही होगी , तो अच्छा है कि ज्यादा पैकेज वाले पुरुष से शादी की जाए। इस तरह न तो बॉस की धौंस सहनी पड़ेगी और एक स्टैंडर्ड के घर का आराम भी मिलेगा। ‘

इस बात का एक और पहलू मीडिया प्रफेशनल गौरी कपूर सामने रखती हैं। वह कहती हैं , ‘ हर सफल पुरुष ऐसी बीवी चाहता है , जो अपने लेवल पर सफल हो। इसलिए महिलाओं से जुड़ी इस रिसर्च में मुझे खास दम नहीं लग रहा है। ‘

जानते हैं पुरुष भी
गुड़गांव की एक फूड बेवरेज फर्म में काम करने वाले गौरव कपूर की बात से यंग जेनरेशन की अप्रोच एकदम क्लीयर हो जाती है। वह मानते हैं कि सही पोस्ट और पैसे से लड़की ही नहीं , बल्कि उसकी फैमिली को इंप्रेस करना भी आसान रहता है और रिश्तों में अनबन की गुंजाइश भी कम होती है। बकौल गौरव , ‘ मैंने अपनी गर्लफ्रेंड से साफ कह दिया है कि जब तक मैं सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर नहीं आ जाता , सेटल होने का सवाल ही नहीं उठता है। इससे उसे भी कोई ऐतराज नहीं है , क्योंकि उसकी फैमिली को भी तो ऊंची पोस्ट का दामाद पसंद आएगा !’

कुछ पुरुष इस मामले को थोड़ा और दूर ले जाते हैं। उनका कहना है कि हाई सोसाइटी की तमाम महिलाएं अपने पार्टनर के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तक को इसी वजह से इग्नोर कर देती हैं। सुंदर और सुरक्षित भविष्य की चाहत में सब कुछ जानते हुए भी वे ज्यादा हायतौबा नहीं मचातीं। इस तरह सोसाइटी में उनकी बेइज्जती भी नहीं होती और ऐशोआराम की जिंदगी भी बनी रहती है।

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