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अभी भी हम कितने बर्बर?

अनुभूति
अनुभूति
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एक समाचार—नई दिल्ली में आर्थिक दैनिक बिजनेस स्टैंडर्ड में काम करने वाली 22 वर्षीया निरुपमा पाठक पिछले सप्ताह झारखंड के कोडरमा स्थित अपने घर में मृत पाई गई थी. पाठक के परिवार ने 27 अप्रैल को मौत को आत्महत्या बताकर उसकी रिपोर्ट करवाई और पुलिस को बताया कि निरुपमा अपने कमरे में पंखे से लटकी पाई गई. झारखंड के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एमएस भाटिया ने बताया कि “पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि मौत हत्या का साफ मामला है, जो गला दबाने से दम घुंटने के कारण हुई.” पुलिस ने निरुपमा पाठक की मां को गिरफ़्तार कर लिया है और उस पर हत्या का आरोप है, जबकि उसके पिता और भाई से पूछताछ चल रही है. पुलिस को मामले के ऑनर किलिंग होने का संदेह इसलिए हो रहा है कि पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार निरुपमा को तीन महीने का गर्भ था. मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि ब्राह्मण जाति की निरुपमा कायस्थ जाति के अपने साथी पत्रकार से अंतरजातीय विवाह करना चाहती थीं.

उपर्युक्त घटना से क्या पता चलता है?

  • हम आर्थिक और विकास के लाख दावों के बावजूद अभी भी बर्बर मानसिकता में जी रहे हैं.
  • हमें अभी भी दूसरों की आजादी के अधिकार का सम्मान नहीं आता.
  • लोकतान्त्रिक पद्धति से बहुत दूर हैं. यह नहीं जान पाए हैं कि लोकतंत्र जीवन की एक सुविचारित प्रणाली है न कि केवल शासन व्यवस्था.

क्या करना चाहिए—       

  • जाति और सामंतवादी मानसिकता से छुटकारा पाने के लिए सरकार को सामाज के साथ मिलकर कोशिश करनी चाहिए.
  • निश्चित तौर पर सरकार को घटना के पूर्व पीड़ित द्वारा ऐसी आशंका जताए जाने पर पूरी आर्थिक और शारीरिक सुरक्षा उपलब्ध करानी चाहिए.
  • ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों को कठोर सजा की व्यवस्था की जानी चाहिए.
  • राजनीतिक दलों को समाज को लोकतान्त्रिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए.

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